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देश का मजदूर रो रहा है (Impact of lockdown on labour's )

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नमस्कार दोस्तों,


                   जिन्हें विदेशों से लाया जा रहा है उन्हें इंडिया की शिक्षा और रोजगार पसंद नहीं था और जो मर गए वो भारत की नींव मजबूत करने वाले मजबूर मजदूर भर थे


                    उम्मीद है कि आप सभी लोग घर में सुरक्षित होंगे। दोस्तों आज का शीर्षक हमारे देश के उन मजदूरो (Labourers) पर आधारित है, जो देश की अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं।



                      सबसे पहले देश की  समस्त माताओ को मातृत्व दिवस (Mothers Day)  की बधाई हो। दोस्तों आज जहाँ बहुत से लोग मदर्स डे  मना रहे होंगे वही हमारी भारतमाता के मजदूर  रूपी पुत्र  आज भी परेशान हो रहे है। हमारी भारत माँ व्यथित है आज अपने मजदूर पुत्रो की इस दशा को देख कर। 



                    न केवल सरकार अपितु  हम सबका कर्तव्य है, कि शीघ्र - अतिशीघ्र मजदूरों को उनकी इस दशा से निकालने का उपाय करके भारत माँ को मदर्स डे के रूप में उपहार दे। 

                  दोस्तों मजदूर (Labour) ऐसा व्यक्ति होता है,जो दिहाड़ी मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालता है।ये लोग मुख्यतः दैनिक वेतन पर ही आश्रित होते हैं और अपनी बचत का एक छोटा सा ही भाग बचा पाते है, जिसे ये अपने बुरे दिनों में कुछ दिन ही उपयोग कर सकते है।




                  दोस्तों आज देश में कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते न जाने कितने मजदूरों के घरों पर संकट आन पड़ा है, अपितु हालात ये है,कि वो अपने घर की और  पैदल ही पलायन करने को  मजबूर है।


                  दोस्तों हमारे देश में 23-24 मार्च की मध्यरात्रि बहुत से मजदूरों के लिए जीने हेतु चुनोती बन कर आयी। ये मजदूर जहा भी थे ये उसी जगह रह गए।इनका काम धंधा ठप पड़ गया।



                  सरकार द्वारा सभी यातायात के साधनों को अचानक बन्द करने का बुरा प्रभाव इन मजदूरों पर ही पड़ा क्योंकि  जहा एक और इनके काम धन्धे बन्द हो गये वही दूसरी ओर इनके पास बची हुए बचत भी खत्म होगयी।

                  सरकार द्वारा इनको कुछ आर्थिक सहायता देने का भी प्रयास किया गया ,किन्तु वे भी कुछ खास परिणाम नही दे सके।

                 सरकार द्वारा इनके रहने खाने की उचित व्यवस्था न कर पाने का परिणाम यह हुआ कि इन मजदूरों को पैदल ही अपने घर की तरफ पलायन करना पड़ा।



                मजबूरी इनके सामने ये थी कि एक तरफ इनके लिए कोरोना  वायरस (Coronavirus) बड़ी बीमारी के रूप में खतरा था तो दूसरी तरफ भूख का सवाल था।

              दोस्तों यहाँ सवाल ये है,कि जहाँ सरकार ने हमारे यहाँ के नागरिकों को लाने के लिए हवाई प्लेन की व्यवस्था कर दी और उन्हें बकायदा वापस ले आये वही इन मजदूरों को उनके घर तक क्यों नही उचित समय में लाया गया। इनके लिए  बसों की और ट्रेनों की व्यवस्था करने में इतना समय क्यों लिया गया? क्या सरकार मजदूरों की होने वाली इस   स्थिति से अनभिज्ञ थी?  

                                            

              दोस्तों मजदूरों के लिए कुछ जगह स्पेशल श्रमिक ट्रैन भी चलायी जा रही हैं,किन्तु उनकी शुरुआत करने में सरकार को काफी समय लग गया ,परिणाम यह निकला कि जहाँ सभी लॉक डाउन के कारण घरो में सुरक्षित है, वही भूख और कोरोना के दोहरे संकट में कई मजदूर अपने छोटे- छोटे बच्चो को लेकर पैदल ही भीषण गर्मी में हजारों किलोमीटर अपने घर को निकल पड़े। जिनमे से कुछ को तो काल का ग्रास भी बनना पड़ा।

कुछ दर्दनाक घटनाये जो मजदूरों के साथ घटित हुई-

पहली घटना - ये घटना अब तक की सबसे दर्दनाक हादसा था जिसने 16 मजदुरो की जान ली थी। ये सभी मजदूर महाराष्ट्र की स्टील कंपनी में काम करते थे लॉक डाउन के चलते ये सभी बेरोजगार हो गये। 

                 पैसे खत्म होने पर इन लोगो के सामने हाथ फैलाने तक की नोबत आ गयी जिससे इन मजदूरों ने घर की ओर  पैदल ही पलायन का निर्णय लिया। 
  

                पैदल चलने के बाद जब ये लोग थक गए तो औरङ्गाबाद  पटरी पर ही सो गये और शुक्रवार  सुबह एक मालगाड़ी इन लोगो के ऊपर से गुजर गई । 16 मजदूर (16 Labours)  मारे गए। पटरियों पर पड़ी रोटी इनके हालातो को साफ साफ बयां कर रही थी। अंततः इनके शव ही घर पहुँचे।

                अन्य घटना शनिवार  9 मई की है जब मुम्बई से यूपी लौट रहे 3 ओर मजदूर काल की गोद में समा गए। दोस्तों ऐसी बहुत सी घटनाये हो रही है,जिनका शिकार मजदूर हो रहा है। 

               यहाँ  कुछ लोग ऐसे भी है,जो इन मजदूरों की मजबूरी का गलत फायदा उठा रहे है। ये लोग अपने ट्रकों में और अन्य लोडिंग वाहनों में इन मजदूरों से  सहायता करने के नाम पर आवश्यकता से अधिक धन ले रहे है।




            एक ओर तो ये लोग मजदूरों को आर्थिक शोषण कर रहे है,ऊपर से कानून व्यवस्था का भी पालन नही कर रहे है।

               कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन ने मजदूरों से  रोजगार तो पहले ही छीन लिया और अब  अगर मजदूर जैसे- तैसे घर लौट भी  रहे  है,तो लालच का वायरस  उनकी बची- कूची बचत को भी निगल रहा है 

                 जहाँ कुछ मजदूर पैदल घर को निकले हैं तो कई मजदूर सड़को पर प्रदर्शन करने को उतर आये ।ये लोग न तो सोशल डिस्टैंसिंग का पालन कर रहे है अपितु पुलिस से भी इनकी झड़प हो रही। सूरत में हुई घटना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।



                 लिहाजा अगर मजदूरों में से कोई भी संक्रमित हो गया तो एक बड़ा समुदाय इनके प्रभाव में आ सकता है,जिससे कोरोना को रोकने के लिए लगाया गया लॉक डाउन विफल भी हो सकता है,और जिसका परिणाम वाकई में भयानक भी हो सकते है।

                  दोस्तों  उम्मीद है,कि सरकार जल्द ही और भी कई सख्त आदेश निकाल कर  इन मजदूरों के लिए उचित व्यवस्था करेगी और आपसे भी मैं आशा रखता हूं ,कि आप भी अपने स्तर पर इनकी सहायता करेंगे।

धन्यवाद!

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